गिरिडीह झारखण्ड

गिरिडीह के लेखक डॉ छोटू प्रसाद चंद्रप्रभ के उपन्यास “आखिर क्यों” का हुआ लोकार्पण

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गिरिडीह। गिरिडीह के लेखक डॉ छोटू प्रसाद चंद्रप्रभ के उपन्यास आखिर क्यों का लोकार्पण रविवार को शहर के शक्ति नगर स्थित कलावती कॉटेज के सभागार में हुआ। अभिनव साहित्यिक संस्था द्वारा आयोजित लोकार्पण व परिचर्चा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गांडेय के पूर्व विधायक जयप्रकाश वर्मा थे। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में धनबाद से आए वरिष्ठ साहित्यकार महेंद्र नाथ गोस्वामी, गिरिडीह के लेखक राजेश पाठक, उदय शंकर उपाध्याय, रामदेव विश्वबंधु, डॉ अनुज कुमार, शंकर पांडेय और कृष्ण मुरारी शर्मा शामिल हुए। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुई। स्वागत गान के साथ अनंत प्रिया ने अतिथियों का स्वागत किया।

 

इसके बाद श्रीमती रेखा वर्मा, अनंत प्रिया, निरंजन प्रसाद, अनंत निशा, अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान, नीति प्रिया, नित्या अनंत, अद्वैत अनंत, प्रभाकर कुमार और रामजी यादव ने सभी अतिथियों को विभिन्न साहित्यिक पुस्तक और पत्रिका भेंट कर अभिनंदन किया। अतिथियों ने अपने करकमलों से डॉ छोटू प्रसाद चंद्रप्रभ के लिखे उपन्यास आखिर क्यों का लोकार्पण किया। कार्यक्रम में बोलते हुए मुख्य अतिथि जयप्रकाश वर्मा ने कहा कि डॉ छोटू प्रसाद गिरिडीह के ऐसे लेखक हैं जो नियमित साहित्य साधना में लगे रहते हैं। अपने पारखी नजरिए से उन्होंने इस उपन्यास का लेखन किया है। इसमें जीवन की सच्चाई को दिखाया गया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान दौर में ऐसी किताबों का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार होना चाहिए। बुक और डिजिटल दोनों रूप में अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंचना चाहिए। पुस्तक पर परिचर्चा में भाग लेते हुए लेखक डॉ महेंद्र नाथ गोस्वामी ने कहा कि डॉ छोटू प्रसाद का लेखन सरल और प्रभावपूर्ण है। इसकी भाषा शैली प्रांजल है। उपन्यास के जरिए लेखक की मुख्य चिंता है कि वर्तमान कठिन परिस्थिति को कैसे बदला जाए। लेखक राजेश पाठक ने कहा कि छपी हुई पुस्तकों का कोई विकल्प नहीं है। अपने लेखन के जरिए डॉ छोटू प्रसाद ने गिरिडीह के साहित्यिक जगत को धनी किया है।

 

विचारक रामदेव विश्वबंधु ने कहा कि लेखन एक तपस्या है। लिखते रहना जरूरी है, उसी तरह पढ़ना भी। इस उपन्यास में वित्तरहित शिक्षा की समस्या को दिखाया गया है जो वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में भी विभिन्न रूपों में आज भी कायम है। हिंदी प्रोफेसर डॉ अनुज कुमार ने कहा कि उपन्यास के लेखक ने साहित्य की गरिमा को बखूबी निभाया है। उपन्यास का शीर्षक आखिर क्यों बहुत आकर्षक और ध्यान खींचने वाला है। सेवानिवृत्त शिक्षक उदय शंकर उपाध्याय ने कहा कि लेखक की वर्णन शैली बहुत अच्छी है। डॉ छोटू प्रसाद गिरिडीह के साहित्यिक जगत में शीर्ष पर हैं। उनका लेखन वर्तमान दौर में काफी उत्कृष्ट है। वरिष्ठ पत्रकार नरेश सुमन ने कहा कि गद्य और पद्य दोनों में डॉ प्रसाद माहिर हैं। उन्होंने कहा कि गिरिडीह के बुद्धिजीवी और साहित्य प्रेमियों को स्थानीय लेखकों की किताबों का प्रचार प्रसार सोशल मीडिया पर करना चाहिए। शैक्षणिक संस्थानों और पुस्तकालयों को भी किताबें खरीद कर लेखक और प्रकाशक को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। संस्कृतिकर्मी शंकर पांडेय ने लेखक को बधाई देते हुए कहा कि उनका लेखन दर्शनशास्त्र से प्रभावित है। अपनी हर किताब में डॉ छोटू प्रसाद पाठकों के लिए एक आदर्श स्थापित करते हैं। वरिष्ठ रंगकर्मी बद्री दास ने लेखक को कलम का सिपाही बताते हुए उन्हें लगातार लिखने की शुभकामना दी। रमाकांत शरण ने कहा कि डॉ छोटू प्रसाद ने अभाव में भी स्वभाव को नहीं बदला। उनका संघर्षपूर्ण जीवन भी उन्हें अपने आदर्शों से नहीं भटका पाया। प्रभाकर कुमार ने कहा डॉ छोटू प्रसाद सरल और संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी हैं। उनके कृतित्व और व्यक्तित्व में अंतर नहीं है। बनावटीपन से दूर ऐसे लेखक नई पीढ़ी के लिए आदर्श हैं। आगत अतिथियों में नवीन सिन्हा, मोइनुद्दीन शमसी, हलीम असद, संजय करुणेश, महेश अमन, परवेज शीतल, मुख्तार हुसैनी, वी अगस्त क्रांति शर्मा और अन्य लोगों ने भी डॉ छोटू प्रसाद को उनके नए उपन्यास के लिए बधाई दी। अपने संबोधन में उपन्यास के लेखक डॉ छोटू प्रसाद ने कहा कि आखिर क्यों उपन्यास वास्तविक घटना पर आधारित है। यह इसी जिले की कहानी है। उन्होंने उन्होंने कहा कि पाठक और समीक्षक ही इस उपन्यास के गुण और दोष की समीक्षा करेंगे। उन्होंने कहा कि जिस घर में पुस्तकें नहीं होती हैं, वह घर बिना खिड़कियों के समान है। परिचर्चा सत्र के बाद मनोज सोरेन ने संताली भाषा में लेखक को समर्पित एक गीत गाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के अंत में अनंत शक्ति ने अपनी बात रखते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन रितेश सराक ने किया।