आज शुक्रवार 06 अक्टूबर 2023 को माताओं ने जितिया का निर्जला व्रत रखा है। इसके बाद कल यानी 07 अक्टूबर 2023 को सुबह स्नानादि और पूजा-पाठ के बाद व्रत का पारण किया जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, आखिर इस व्रत की शुरुआत कैसे हुई। तो चलिए जानते हैं जितिया व्रत से जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में। मान्यता है कि, इस कथा को सुने या पढ़े या बिना जितिया का व्रत अधूरा रह जाता है। इसलिए आप पूजा में भी इस कथा का पाठ जरूर करें। बता दें कि जितिया व्रत से जुड़ी एक नहीं बल्कि कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जोकि इस प्रकार से है-
जितिया व्रत कथा (चील और सियारिन)
जितिया की कथा के अनुसार एक बार एक चील और एक सियारिन नर्मदा नदी के पास हिमालय के जंगल में रहते थे। दोनों ने कुछ महिलाओं को पूजा करते और उपवास करते देखा और खुद भी इसे करने की कामना की। उपवास के दौरान, सियारिन को बहुत भूख लग गयी और वह जाकर चुपके से मरे हुए जानवर को खा लिया। दूसरी ओर, चिल्लो ने पूरे समर्पण के साथ व्रत का पालन किया और उसे पूरा किया। अगले जन्म में दोनों ने मनुष्य रूप में जन्म लिया। चील के कई पुत्र हुए और वह सभी जीवित रहे। लेकिन सियारिन के पुत्र होकर मर जाते थे। इससे बदले की भावना से उसने चिल्लो के बच्चे को कई बार मारने का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो गई। बाद में चिल्लो ने सियारिन को अपने पूर्व जन्म के जितिया व्रत के बारे में बताया। इस व्रत से सियारिन ने भी संतान सुख प्राप्त किया। इस तरह यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए जगत में प्रसिद्ध हुआ।
जितिया व्रत की कथा (महाभारत युद्ध)
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार महाभारत युद्ध के दौरान जब द्रोणाचार्य की मृत्यु हुई तो इसका बदला लेने के लिए उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र चला दिया। इस ब्रह्मास्त्र के कारण अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु की मृत्यु हो गई। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया से उत्तरा के गर्भ में संतान को फिर से जीवित कर दिया। कहा जाता है कि, जब बच्चे का जन्म हुआ तो उसका नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। इसके बाद से ही माताएं संतान की लंबी आयु और प्राण रक्षा के लिए जितिया का व्रत करती हैं।