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गिरिडीह का प्रसिद्ध बेवकूफ होटल, आखिर क्यों पड़ा ये नाम जाने पूरी कहानी

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अगर आपको बेवकूफ कहा जाए.. तो कैसा लगेगा.. जाहीर है गुस्सा आएगा… शायद ही कोई होगा जो इसे सुनने के बाद खुश होता हो। पर गिरिडीह में यह शब्द लोगों को बहुत पंसद आ रहा है। इस शब्द से जहां सैकड़ों लोगों की रोजी रोटी चलती है। वहीं हजारों लोगों की भुख मिटती है। बता दें एक शख्स को बेवकूफ शब्द इतना पसंद आया कि उसने इस नाम से होटल ही खोल दिया। आज इस नाम से शहर में होटलों की चेन है। इन होटलों में न सिर्फ स्वाष्टिट भोजन मिलता है बल्कि रेट भी वाजिब है। बेवकूफ होटल में ग्राहकों की भरमार रहती है। गिरिडीह शहर में किसी को अच्छे रेट में और घर का खाना खाने की इच्छा होती है तो लोग यही कहते हैं ‘चलो बेवकूफ’।

बेवकूफ होटल की कहानी करीब 50 साल पहले गिरिडीह के अंबेडकर चौक से शुरू होती है। उस वक्त गोपी राम नाम के एक शख्स यहां होटल चलाते थे। कई लोग उन्हें बेवकूफ बनाकर खाना खा लेते थे और चले जाते थे। यह सिलसिला चलता रहा। कई बार गोपी को अहसास होता कि वे ठगे जा रहे हैं। कुछ लोग इसका मजाक भी बनाते। गोपी राम के भतीजे प्रदीप राम बताते हैं एक दिन उनके चाचा ने होटल का नाम ही बेवकूफ रख दिया। लेकिन, क्वालिटी आज तक बरकरार है। होटल अपग्रेड हुआ लेकिन भोजन की गुणवत्ता हमेशा घर जैसी ही रही। बेवकूफ होटल में उमड़ रही ग्राहकों की भीड़ और यहां मिलनेवाले भोजन की तारीफ सुनकर शहर के कुछ अन्य लोगों ने इस नाम से मिलता जुलता होटल शुरू किया। गिरिडीह में बेवकूफ नाम से चार होटल संचालित हैं।

बेवकूफ होटल, श्री बेवकूफ, महाबेवकूफ और बेवकूफ नंबर वन। सभी होटल में खाने का अलग ही स्वाद है। श्री बेवकूफ के मालिक ऋतिक भदानी कहते हैं उनके पिता ने 1992 में इस होटल की शुरुआत की थी। उनके यहां हर रोज वेज और नॉन वेज भोजन मिलता है। 1995 में खुले महाबेवकूफ होटल के संचालक ओमप्रकाश सिंह का कहना है कि जब सभी बेवकूफ होटल वाले होशियार हो तब उन्होंने महाबेवकूफ होटल खोल दिया। बेवकूफ नंबर वन के शंभू साव का कहना है कि करीब 20 साल से वे होटल चला रहे हैं और दूसरे होटलों के तुलना में उनके यहां रेट काफी कम है।

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