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श्री शाकम्भरी सेवा समिति द्वारा माता शाकम्भरी के 9वें वार्षिक उत्सव पर सजाया गया भव्य दरबार

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श्री शाकम्भरी सेवा समिति, गिरिडीह के द्वारा स्थानीय श्री श्याम मंदिर प्रांगण में शाक भवानी माता शाकम्भरी देवी का 9 वां वार्षिक उत्सव सह माता का प्राकट्य दिवस समारोह आयोजित किया गया, इस दौरान भव्य दरबार, मनमोहक श्रृंगार, अखंड ज्योत, 251 महिलाओं द्वारा श्री शाकम्भरी मंगलपाठ, मेंहदी, गजरा, चुनड़ी उत्सव, भजन संध्या, छप्पन भोग महाप्रसाद, आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। कार्यक्रम में गिरिडीह के प्रसिद्ध कलाकारों श्री आकाश परिचय द्वारा भजन प्रस्तुत किया गया।
बताया गया कि सनातन परंपरा के तहत व्यक्ति ज्ञान, कर्म और भक्ति के कई मार्गों द्वारा ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयास करता है। लेकिन इनमें भी भक्ति सर्वश्रेष्ठ है। ईश्वर की भक्ति या फिर कहें उनकी साधना का सरल, सुगम और सुंदर माध्यम है कीर्तन। देवी-देवताओं के लिए किए जाने वाले इस कीर्तन से तन मन और धन से जुड़ी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और सुख-सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है।

पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार धरती पर दुर्गम नामक महादैत्य ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर के चारों वेदों का स्वामित्व प्राप्त कर बैठा जिसके कारण सभी धार्मिक और वैदिक क्रियाओं का फल उसे मिलने लगा और देवताओं की शक्ति पूर्ण रूप से क्षिण हो गई जिसके कारण सम्पूर्ण सृष्टि अकाल ग्रस्त हो गई और 100 वर्षों तक वृष्टि नहीं हुई जिसके कारण चारों तरफ हाहाकार मच गया। तब देवताओं और ऋषि मुनियों के आह्वान पर आदिशक्ति जगदम्बा शताक्षी रूप में प्रकट हो कर अपने 100 नेत्रों से अश्रु बहाकर वृष्टि करवायी और फिर शाकम्भरी का रूप धारण कर के अपने भक्तों की क्षुधा को मिटाया। इसी रूप में माता ने दुर्गम महादैत्य का वध किया था जिसके बाद उनका नाम दुर्गा देवी प्रचलित हुआ।

माता का विशाल मन्दिर सकरायधाम (राजस्थान) में स्थित है, श्री शाकंभरी माता का यह गाँव सकराय आस्था का केंद्र है। सुरम्य घाटियों के बीच बना शेखावाटी प्रदेश के सीकर जिले में यह स्थित है। यह मंदिर सीकर जिले से 51 की.मी. दूर अरावली की हरी भरी वादियों में बसा हुआ है। झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी के समीप यह मंदिर उदयपुरवाटी गाँव से 16 की.मी. की दूरी पर है। यहाँ के आम्रकुंज एवं निएमल जल का झरना आने वाले भक्तों का मन मोहित कर लेते है। आरम्भ से ही इस शक्तिपीठ पर नाथ सम्प्रदाय का वर्चस्व रहा है, जो की आज भी कायम है। इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में किया गया था। पौराणिक मान्यताओं में इस मंदिर की स्थापना पांडवों द्वारा किया गया था।
कार्यक्रम को सफल बनाने में संयोजक अमित छापरिया, अध्यक्ष विनोद खंडेलवाल, सचिव सुधीर गोयल दीपक चिरानिया, आरती छापरिया, सोनी गोयल, पूनम चिरानिया, आदि भक्तों का योगदान रहा।

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