गिरिडीह झारखण्ड

आखिर क्यों अस्पताल की दहलीज पर अपनी मां की इच्छा मृत्यु मांग रहे बच्चे…

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अस्पताल जहां लोग जीने की उम्मीद लेकर आते हैं. उसी अस्पताल की दहलीज पर बेटा गौरव और बेटी पूजा अपनी मां के लिए इच्छा मृत्यु मांग रहे हैं. पूजा बोलते हुए भावुक हो जाती है. आंखों से निकलते आंसुओं के बीच कहती है कि सरकार मेरी मां को या तो इच्छा मृत्यु दे या फिर उनके बेहतर इलाज की व्यवस्था करें.
दरअसल गिरिडीह जिले के पचंबा थाना क्षेत्र बोरो बाजार समिति की रहने वाली 45 वर्षीय उषा देवी अप्रैल के महीने में कोरोना संक्रमित हुई. 14 दिन के इलाज के बाद उषा कोरोना से ठीक तो हो गई, लेकिन 17 मई को उन्हें ब्लैक फंगस ने अपनी चपेट में ले लिया. जिसके बाद इलाज के लिए उन्हें रिम्स लाया गया.
उषा देवी का बेटा गौरव का कहना है कि 17 मई को अपनी मां को लेकर रिम्स पहुंचे थे. इलाज शुरू करने में चिकित्सकों को 48 घंटे लग गए. पहले उन्हें रिम्स के ओल्ड ट्रामा सेंटर में रखा गया था. फिर न्यू ट्रामा सेंटर और अब डेंगू वार्ड में रखा गया है. उन्होंने कहा कि दो बार डॉक्टर ने ऑपरेशन टाल दिया. डॉक्टर कह रहे हैं थे कि मरीज की बीपी और शुगर का स्तर बढ़ा हुआ है. जिस कारण ऑपरेशन नहीं हो सकता है. अब डॉक्टर कह रहे हैं कि इंफेक्शन ब्रेन तक पहुंच गया है. इलाज रिम्स में नहीं होगा. इसके लिए केरल या फिर अहमदाबाद जाना पड़ेगा.
गौरव कहते हैं कि अब तक के इलाज में 2 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं. सभी दवाइयां बाहर से लानी पड़ रही है.
पासाकोनाजोल टैबलेट जिसकी कीमत पहले 5 हजार थी अब 6 हजार हो गयी है, 8 पत्ता (1 पत्ता में 10 टैबलेट) 46 हजार का खरीद चुके हैं. अब अपनी मां का इलाज करा पाने में असमर्थ हैं. उषा देवी के दो बेटे और एक बेटी है. पति की पहले ही मौत हो चुकी है. दोनों बेटा दुकान में काम कर मां का इलाज करा रहे हैं.
उषा देवी की बेटी पूजा कहती हैं कि मेरी मां का इलाज अब सरकार कराए. अन्यथा इच्छा मृत्यु दे. हमारे पास पैसे नहीं हैं. उन्होंने कहा कि जब मेरी मां की स्थिति ठीक थी उस वक्त चिकित्सकों ने इलाज में लापरवाही की. जिस कारण अब मेरी मां जिंदगी और मौत से जंग लड़ रही है. एक आंख तो पूरी तरह से खराब हो चुकी है. संक्रमण फेफड़े तक फैल चुका है. अब दूसरी आंख भी खराब होने के कगार पर है।