अखिल भारतीय बीमा कर्मचारी संघ द्वारा एलआईसी कार्यालय में एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया। प्रेस वार्ता में बीमा कर्मचारी संघ के सचिव धर्म प्रकाश ने कहा कि देश के सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा वित्तीय संस्थान भारतीय जीवन बीमा निगम ने 01 सितम्बर को अपनी स्थापना के 65 वर्ष पूरा कर 66 वें वर्ष में प्रवेश किया । LIC की स्थापना 1 सितंबर 1956 में “लोगों का पैसा लोगों के कल्याण के लिए” और “इस देश में सभी के लिए जीवन बीमा सुरक्षा प्रदान करना” की दृष्टि के साथ की गई। जिसे LIC ने इन सभी 65 वर्षों में अच्छी तरह से क्रियान्वित किया । 01 सितम्बर 1956 को मात्र 05 करोड़ की पूंजी के साथ स्थापित इस निगम ने अपने 65 साल की सफल यात्रा में आज 38 लाख 56 हजार करोड़ रूपया की परिसम्पति का निर्माण किया है । “ब्रांड फाइनेंस इंश्योरेंस-100” द्वारा जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार एल.आई.सी विश्व का तीसरा सबसे मजबूत ब्रांड तथा 10 वाँ सबसे मूल्यवान ब्रांड बन चुका है।
LIC अपने स्थापना के बाद से भारत सरकार को अब तक लगभग 28,700 करोड़ रूपया लाभांश के रूप में दे चुकी है। LIC ने द्वितीय पंचवर्षीय योजना 1956-61 से लेकर 13 वीं 2017-2022 तक में कुल 55 लाख 76 हजार 113 करोड़ रूपया का योगदान दिया है । LIC ने आधारभूत सरंचना जैसे रेलवे, सिंचाई, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण इत्यादि, केंद्र सरकार तथा विभिन्न राज्य सरकारों को अभी तक 26 लाख 86 हजार 527 करोड़ रूपया दिया है।
बीमा क्षेत्र के खुलने के दो दशकों के बाद भी LIC की बीमा बाजार में 74.58 % हिस्सेदारी है। वर्ष 2020-21 के दौरान LIC की कुल आय 6.82 करोड़ रूपया है तथा LIC द्वारा इस दौरान कुल 2.10 करोड़ नया बीमा बेचा गया है । इस दौरान LIC ने लगभग 54,000 करोड़ रूपया अधिशेष कमाया जिसका 95% यानि लगभग 51,000 करोड़ रूपया पॉलिसीधारकों के बीच बोनस के रूप में तथा 5% लगभग 2,700 करोड़ रूपया भारत सरकार को लाभांश के रूप में दिया है । LIC ने वर्ष 2020-21 में लगभग 2.30 करोड़ पॉलिसियों के दावा का निपटारा करते हुए 1.47 लाख करोड़ रूपया का भुगतान किया है।
इस अवसर पर सरकार की राष्ट्रीय मौद्रीकरण योजना(NM P) का विरोध करते हुए कहा कि इसका एकमात्र उद्देश्य देश की सम्पति को बेचना है । ऐसा लगता है कि मोदी सरकार पूर्व अर्जित सारी परिसम्पतियाँ आनन-फानन में बेच देना चाहती है । सार्वजनिक क्षेत्र को खड़ा करने में वर्षों की मेहनत और आम जनता का पैसा लगता है । अब जब ये क्षेत्र लाभप्रद स्थिति में हैं ,तो इसे निजी व्यवसायियों को भाड़े पर दे देना जिसे “ मौद्रीकरण” का नाम दिया गया है, ऐतिहासिक भूल होगी। यदि सार्वजनिक क्षेत्र सक्षम नहीं होते तो इनसे इतना भारी मुनाफा नहीं होता । और यदि निजी क्षेत्र इतने ही सबल, सक्षम होते,तो मेहुल चौकसी, विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे उद्योगपति भगोड़े नहीं होते । अनिल अम्बानी जैसे उद्योगपति तथा यस बैंक, पंजाब महाराष्ट्र को-ओपरेटिव बैंक, लक्ष्मी विलास जैसे प्राइवेट बैंक दिवालिया नहीं होते। सरकार ने कभी भी यह स्पष्ट नहीं किया कि जब सारी सम्पतियाँ बेच दी जाएगी तो खजाने में पैसा कहाँ से आएगा । क्या निजी कारोबारियों से सरकार इतना कमा सकेगी जिससे प्रशासकीय जरूरतें और कल्याणकारी कार्यक्रम चलाए जा सकेंगे । आम जनता को यह समझना होगा कि लाभप्रद सरकारी कम्पनियों तथा परिसम्पतियों की बिक्री से पूँजी का केंद्रीकरण होगा जिसका खामियाजा अंतत: उन्हें ही भुगतना पड़ेगा ।
सरकार LIC को पूँजी बाजार में सूचीबद्ध कर रही है, इसका विनाशकारी प्रभाव बीमा उद्योग पर पड़ेगा । बीमा उद्योग के राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य था, सभी बीमा योग्य लोगों को उचित कीमत में बीमा पहुँचाना ।परंतु LIC के शेयर को बेचना उन्हीं घपलेबाज पूँजीपतियों को बीमा व्यवसाय को सौंपना जिनके घपले और घोटालों की वजह से इसका राष्ट्रीयकरण किया गया था । हम भारत सरकार द्वारा LIC मे IPO के माध्यम से विनिवेशीकरण का पुरजोर विरोध करते हैं । देश की जनता की बचत को कॉरपोरेटों के हाथों में दिया जाना सरासर गलत है । हम बीमा कर्मचारी अपने संगठन के माध्यम से देश के 40 करोड़ बीमा धारकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं,तथा भारत की जनता को यह विशवास दिलाते हैं, कि LIC की विशाल निधि की हिफाजत करेंगे।
प्रेस वार्ता में संघ के सचिव धर्म प्रकाश,अध्यक्ष संजय शर्मा संयुक्त सचिव अनुराग मुर्मू ,राजेश कुमार उपाध्याय, विजय कुमार तथा श्वेता ने भाग लिया।